गणेश शंकर विद्यार्थी लेख-छः / अनुसंधान कमेटी या जले पर नमक !

विद्यार्थी जी 

जिस अनुसंधान कमेटी की चर्चा इतने दिनों से समाचार-पत्रों में हो रही थी, जिसकी आवश्यकता को विलायत और हिंदुस्तान के अंग्रेजी अख़बारों ने भी किस रूप में माना था, जिसके पक्ष में प्रजा वत्सल लार्ड हार्डिंग ने अपनी उदारता और न्याययुक्त वक्तृता देकर सारे देश को मोहित किया था, और जिसकी भावी नियुक्ति की आशा भारत-सचिव लार्ड क्रू महोदय ने लन्दन डेपुटेशन का उत्तर देते हुए दिखाई थी, जिसकी अनिवार्यता, प्रयोजनीयता और युक्ति युक्तता बम्बई, कलकत्ता, प्रयाग, कानपुर आदि नगरों की विराट सार्वजानिक सभाओं में प्रबल प्रमाणों और अखंडनीय हेतुओं से सिद्ध की गई थी, उसका जन्म हो गया. इस बात को हमारे पाठक जानते हैं. परन्तु यह कमेटी क्या बनी है, मानो पहाड़ खोदकर चूहा निकाला गया है. 

बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो क़तर-ए खून निकला...

उक्त कमेटी में तीन मेंबर होंगे जिनको जनरल वोथा और उनकी गवर्नमेंट ने नियुक्त किया है. ये तीनों दक्षिण अफ्रीका की गवर्नमेंट के नमकख्वार और वफादार कर्मचारी हैं. मि. विली तो नेटाल गवर्नमेंट की शासन समिति के एक सदस्य हैं. अतएव आज नेटाल में हिन्दुस्तानियों के साथ जो अत्याचार और पाशविक व्यवहार हो रहे हैं, उनके कर्ताओं और उत्तरदाताओं में मि. विली भी हुए. अपराधी और न्यायाधीश, रक्षक और भक्षक आदि शब्द शायद हिन्दुस्तानियों के सम्बन्ध में जनरल वोथा की गवर्नमेंट के कोष में एकार्थवाची हैं. जिन महानुभावों की कृपा से हमारे ऊपर तीन पौंड वार्षिक टैक्स लगा, जिनकी बदौलत खानें जेल और खानों के मालिक जेलर बना दिए गए, जिनकी आँखों के सामने हमारे भाइयों का शीतल रक्त आज अफ्रीका की उष्ण भूमि पर गिराया जा रहा है, वही अनुदार, पक्षपाती और विवेकशून्य अफ्रीकावासी  हमारे मुकदमें की जाँच-पड़ताल करने के लिए नियुक्त किये गए. भला इससे बढ़कर ह्रदय बिदारक परिहास, एक जाति दूसरी जाति के साथ और क्या कर सकती है? क्या यह हमारे ताजे जख्मों पर ननमक लगाना नहीं है? क्या यह भारतवासियों के शांतिमय आन्दोलन की प्रभावहीनता और निस्सारता का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है? क्या यह सिद्ध नहीं करता कि वुअर सरकार भारतीय और साम्राज्य सरकार को अपने मुकाबले में अत्यंत तुच्छ और आशक्त समझती है.
लार्ड हार्डिंग की वक्तृता से हमें विश्वास हुआ था कि भारतीय प्रतिनिधियों को इस कमेटी में पूर्ण स्थान मिलेगा. और लार्ड क्रू के उत्तर से तो यह बिल्कुल स्पष्ट था कि कम से कम एक को हिंदुस्तान से जरूर ही लिया जाएगा. परन्तु भारतीय-सचिव और महारा महाराजाधिराज पंचम जार्ज के स्थानापन्न लार्ड हार्डिंग महोदय के वाक्यों पर आज पानी फिर गया. वुवर अफ्रीकन सिंह ने ब्रिटिश सिंह को दबा लिया. आज महाबलशाली, परमप्रतापी, ब्रिटिश केसरी अप्रतिष्ठित और गौरव विहीन  होकर अपनी खुली आँखों से टुकुर-टुकुर देख रहा है. 30 करोड़ भारतीय प्रजा ब्रिटिश सरकार के इस अधःपतन से दुखी और शंकित हुई है. सरकार के उस अंग्रेजी बल, वीरता, पराक्रम और दबदबे पर संदेह हो गया है. आज भारत के घर-घर में बाल, वृद्ध और वनिता, गरीब और अमीर, निरक्षर और साक्षर ब्रिटिश सरकार की निर्बलता और साहसहीनता को समझ गए हैं. भारतीय शिक्षित समाज भी समझने लगा है कि इंगलिस्तान में परिणामदर्शिता , राजनीतिज्ञता और उदारता की शीघ्र नैतिक म्रत्यु होने वाली है. मालूम होता है कि साम्राज्य सचिव मंडल में आज इतनी उदासीनता छाई हुई है, कि उसे हिंदुस्तान के सुख और दुःख, हर्ष और शोक, भाव और विचार, शांति और अशांति से कोई प्रयोजन नहीं रहा. सचिव मंडल की यह निद्रा, यह घोर तामसिक उदासीनता साम्राज्य की जड़ के लिए कुठाराघात है.
उसे याद रखना चाहिए कि यह प्रश्न हिन्दुस्तानियों और वूअरों, भारतीय गवर्नमेंट और नेटल गवर्नमेंट, लार्ड हार्डिंज और जनरल वोथा ही से सम्बन्ध नहीं रखता. अगर इसका अंत इसी समय न होगा, तो इसका प्रभाव साम्राज्य के अंतर्गत समस्त रियासतों और उनके पारस्परिक प्रश्नों पर पड़ेगा. क्या ब्रिटिश सरकार अपनी कूटनीति का अवलंबन करके साम्राज्य को कुरुक्षेत्र बनाकर महाभारत कराना चाहती है? गरज विचारे बल-विद्या-विहीन भारत के गौरव और अधिकारों के रक्षार्थ ब्रिटिश तलवार में जंग जाय तो कोई आश्चर्य नहीं, किन्तु क्या जिस समय समान स्वात्वाधिकारी दो रियासतों की मुठभेड़ होगी, तो क्या उस समय भी साम्राज्य सरकार वर्तमान नीति का प्रयोग करेगी? क्या वह महाराजा पंचम जार्ज के मुकुट के सर्वोत्तम रत्न भारत भारत को पददलित और अपमानित करके उस वुअर गवर्नमेंट को  प्रसन्न और संतुष्ट रखने की आशा करती है जो अभी कल ही शत्रु थे? हम बलपूर्वक कहते हैं कि कमेटी के संगठन से भारतीय प्रजा अत्यन्त असंतुष्ट है. ऐसी कमेटी द्वारा जाँच होने की अपेक्षा तो जाँच का न होना बेहतर है. हमें भय है कि उक्त कमेटी अफ्रीकवासी गोरों के अत्याचारों, भयानक करतूतों और सख्तियों पर पर्दा डालने कि कोशिश करेगी और हिन्दुस्तानी प्रवासियों के कष्टों और शिकायतों के असली कारणों तक पहुँचाने और वर्तमान स्थिति पर स्वतंत्र सम्मति प्रगट करने से वंचित रहेगी.
कमेटी का अनुसंधान-क्षेत्र भी अतना तंग और संकीर्ण रखा गया है कि वास्तविक प्रश्नों और शिकायतों का हाल होना असंभव है. जरूरत तो है रोग के कारणों को जानने और तदनुसार दावा करने की, किन्तु इलाज किया जाता है बाहरी और उपरी लक्षणों का. बाहरी लक्षणों की चिकित्सा असली नहीं, क्योंकि समय पाकर रोग पुनः अपने पूर्व रूप को धारण करता है. केवल वर्तमान उपद्रव और हड़ताल सम्बन्धी तहकीकात से हमें हमारे अधिकार नहीं मिल सकते. हम चाहते हैं कि भारतीय मजदूरों के मालिकों के अत्याचारों, जेलरों के क्रूर और निष्ठुर व्यवहारों, नीच श्रेणी के राज्यकर्मचारी के सख्तियों और ज्यादतियों की तहकीकात के साथ ही प्रवासियों की स्थिर शिकायतों पर विचार एक ऐसी कमेटी द्वारा हो जिसमें कम से कम दो भारतीय प्रतिनिधि अवश्य हों.
इसके अतिरिक्त मि. गाँधी, वोलक, दाउद मोहम्मद आदि नेताओं के जेल में रहते हुए जाँच करना मनसमझौती और दिल बहलाव से अधिक नहीं. मुसीबतों, कष्टों और अत्याचारों से दबे और मारे हुए विचारे कुली भला कमेटी के सामने क्या कहेंगे. जिरह के सामने बड़े-बड़े चतुर पुरुषों के छक्के छूट जाते हैं. ऐसी अवस्था में भारतीय नेताओं का छूटना जरूरी है, ताकि वे पहले से अपने पक्ष को तैयार करें. हमारा विचार है कि जब तक कमेटी का अनुसंधान क्षेत्र न बढ़ाया जाये, उसमें भारतीय प्रतिनिधि को स्थान न मिले और प्रवासियों के नेता न छोड़ दिए जाएँ, हमें बराबर आन्दोलन जारी रखना चाहिए. किसी हिन्दुस्तानी या उसके शुभचिंतकों को कमेटी के सम्मुख साक्ष्य कदापि न देना चाहिए. हमें आशा है कि प्रत्येक नगर में बहुत शीघ्र सार्वजानिक सभाएं होंगी जिसमें उपरोक्त तीन विषयों पर विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है.
नोट-विद्यार्थी जी का यह लेख प्रताप के 21 दिसंबर 1913 के अंक में प्रकशित हुआ था. (साभार)

मेरी बात-हमेशा की तरह विद्यार्थी जी इस लेख में भी निर्भीक कलम चलाते हुए दिखे. ब्रिटिश सरकार को चुनौतियाँ देते हुए दिखे. भारतीयों को सांत्वना देते हुए दिखे तो पूरी सरकार को ललकारने में कोई कसर नहीं छोड़ा उन्होंने. उनकी इस सम्पादकीय को लिखते हुए मुझे अनेक ऐसी उपमाएं मिलीं, जिनके सहारे लेखक ने व्यंग-व्यंग में भी शासन-सत्ता को चुनौती दी. ऐसे बहादुर, तेजस्वी कलमकार को नमन.



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